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01:25, 28 अक्टूबर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
|संग्रह=
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<poem>तुम्हारे इन्तज़ार में एक उम्र गुज़ार दी मैनें
मुझे अब पुनर्जन्म का यकीन हो चला है
क्योंकि न मैं जीता रहा
न जी सके हो तुम मुझसे दूर
एक उम्र खामोशियों की जो गुजरती है अब
कभी तो हमें जिला जायेगी
तुम्हारे क़रीब ही मेरी रूह को साँस आयेगी..
२०.११.१९९६</poem>