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स्नेह-रीति / सियाराम शरण गुप्त
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04:27, 29 अक्टूबर 2009
"प्रज्वलित होता रहा, अच्छा हुआ,"
दीप बोला - "जागना मेरा सफल।
अब सुजागृति
नें
ने
तुझे आ कर छुआ,
पा सकूँगा सुप्ति-सुख मैं भी विमल!"</poem>
अनिल जनविजय
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