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शिशिर ने पहन लिया / अज्ञेय

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{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
}}{{KKCatKavita}}<poem>
शिशिर ने पहन लिया वसंत का दुकूल
गंध बन उड़ रहा पराग धूल झूल
पीत वसन दमक उठे तिरस्कृत बबूल
अरे! ऋतुराज आ गया।
</poem>
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