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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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मुद्दत हुई कि रिश्ते का कुहरा भी छँट गया
हम मुन्तज़िर थे शाम से सूरज के दोस्तों , दोस्तो!
लेकिन वो आया सर पे तो क़द अपना घट गया
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