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<poem>
वे बारिश में धूप की तरह आती हैं–
थोड़े समय के लिए और अचानक
हाथ के बुने स्वेटर, इंद्रधनुष, तिल के लड्डू
और सधोर की साड़ी लेकर
वे आती हैं झूला झुलाने
पहली मितली की ख़बर पाकर
और गर्भ सहलाकर
लेती हैं अन्तरिम रपट
गृहचक्र, बिस्तर और खुदरा उदासियों की।
झाड़ती हैं जाले, संभालती हैं बक्से
मेहनत से सुलझाती हैं भीतर तक उलझे बाल
कर देती हैं चोटी-पाटी
और डाँटती भी जाती हैं कि री पगली तू
किस धुन में रहती है
कि बालों की गाँठें भी तुझसे
ठीक से निकलती नहीं।
बालों के बहाने वे बारिश में धूप गाँठें सुलझाती हैं जीवन की तरह आती हैं–<br>थोड़े समय के लिए और अचानक<br>हाथ के बुने स्वेटरकरती हैं परिहास, इंद्रधनुष, तिल के लड्डू<br>सुनाती हैं किस्से और सधोर की साड़ी लेकर<br>फिर हँसती-हँसाती वे आती हैं झूला झुलाने<br>दबी-सधी आवाज़ में बताती जाती हैं– पहली मितली की ख़बर पाकर<br>चटनी-अचार-मूंगबड़ियाँ और बेस्वाद संबंध चटपटा बनाने के गुप्त मसाले और गर्भ सहलाकर<br>नुस्खे– लेती हैं अन्तरिम रपट<br>सारी उन तकलीफ़ों के जिन पर गृहचक्र, बिस्तर और खुदरा उदासियों की।<br><br>ध्यान भी नहीं जाता औरों का।