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अदृश्य दुभाषिया / अभिज्ञात
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17:13, 4 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अभिज्ञात
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>चिठि्ठयाँ आती हैं
आती रहती है
काग़ज़ी बमों की तरह हताहत करने
अपने सही आशय के साथ
नहीं पहुँचतीं।
</poem>
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