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सूत न कपास / शैलेन्द्र चौहान

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|रचनाकार=शैलेन्द्र चौहान|संग्रह=ईश्वर की चौखट पर / शैलेन्द्र चौहान
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हमारे कस्बे के
 
दशहरा मैदान में
 
ऐन दशहरे के दिन
 
जब रात के नौ बजे
 
भड़-भड़ की ध्वनि के साथ
 
जला रावण
 
तब कस्बे के एक साधारण,
 
पर होशियार कवि ने
 
सोचा लिखने को
 
सेंसेशनल कविता एक
 
रावण पर
 
छोड़ रावण को अधजला
 
रामलीला के दर्शकों को
 
विस्मय और आनंद से दबा
 
वह स्कूटर स्टार्ट कर
 
लौटा सीधा घर
 
रावण के भीतर छुटते पटाखों
 
रंगबिरंगी रोशनी, चाट-पकौड़ी
 
सजे-धजे लोग, लुगाइयाँ और बच्चे
 
समाए थे उसके चित्त में
 
पर वह बहुत चतुरता से
 
पलटना चाहता था
 
फाइल का पन्ना
 
 
नहीं था रावण अधम
 
दुराचारी, कपटी,
 
यही बात हो कविता में अगरचे
 
तो बनेगी सेंसेशनल कविता
 
बन जाएगी बात
 
मीडिया की मेहरबानी से
 
हो जाए जो चर्चित
 
आख़िर सलमान रश्दी
 ’ सेटेनिक ’सेटेनिक वर्सेज’ लिखकर 
करता है यही और
 
रातों-रात हो जाता है पॉपुलर
 
अयातुल्लाह खोमैनी
 
जारी करता है फतवा
 
रश्दी को मारने का
 
जाना पड़ता है तस्लीमा नसरीन को
 
स्विटजरलैण्ड
 
हिंदी के लेखक बेचारे
 
कुछ नहीं लिख पाते ऐसा
 
कि रातों-रात बन सकें अंतर्राष्ट्रीय
 
उन्हें तो चर्चा करनी पड़ती है
 
कभी रश्दी, कभी देरिदा, कभी गिंसबर्ग की
 
बहुत सी जानकारियाँ दे रहे हैं वे
 
रश्दी के बारे में, साम्राज्यवाद और
 
उसकी कूटनीति के बारे में
 
मीडिया की मेहरबानी से
 
उनका धंधा चल रहा है चौकस
 
भाँज रहे हैं वे अपने तेल से सने लट्ठ
 
हिंदी में
 
( रश्दी को जवाब देने के लिए
 
जरूरी नहीं जाना अमेरिका या योरोप,
 
और लिखना अंग्रेज़ी में )
 
कस्बे का कवि
 
बेचारा अटका है अभी तक
 
राम चरित मानस पर
 
वह सेंसेशनल असाहित्यिक बहस
 
चलाना चाहता है रावण से
 
उसके इस छोटे से कस्बे में
 
न प्रेस है,न टीवी
 
न रिकार्डिंग के अवसर
 
न मण्डी हाउस
 
न पुरुस्कार, सम्मान
 
भला एक-दो
 
साहित्य, कला अकादमियाँ
 
संस्कृति भवन, संस्कृति सचिव
 
क्यों नहीं हैं उसके
 
शहर में ?
</poem>
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