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|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
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तुम्हारे हाथ
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तुम्हारे नर्म, हसीं, दिल-नवाज़ हाथ नहीं
महक रहे हैं मिरे हाथ में बहार के हाथ
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