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03:19, 7 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=बशीर बद्र
|संग्रह=आस / बशीर बद्र
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<poem>
हर बात में महके हुए जज़्बात की ख़ुशबू
याद आई बहुत पहली मुलाक़ात की ख़ुशबू
छुप-छुप के नई सुबह का मुँह चूम रही है
इन रेशमी ज़ुल्फ़ों में बसी रात की ख़ुशबू
मौसम भी हसीनों की अदा सीख गए हैं
बादल हैं छुपाये हुए बरसात की ख़ुशबू
घर कितने ही छोटे हों, घने पेड़ मिलेंगे
शहरों से अलग होती है क़स्बात की ख़ुशबू
होंटों पे अभी फूल की पत्ती की महक है
साँसों में रची है तिरी सौग़ात की ख़ुशबू
(१९७५)
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