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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन }}<poem>गर्मी का चौमासा लोग धरम जान कर अहरी…
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{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>गर्मी का चौमासा
लोग धरम जान कर
अहरी चलाते थे
जहाँ प्यास लगने पर
चौए चरवाहे पानी पिया करते थे
कभी कभी महावत भी आते थे
अपने हाथी ले कर
लेकिन अहरी वाला हाथी के लिए
हामी नहीं भरता था
क्योंकि हाथी पानी पी कर
अपने सूंड भर भर कर
जल क्रीडा करते थे
अहरी में इतना ही पानी भरा रहता था
जिस से गोरू मानुष जी भर पानी पी कर
अपने अपने ठीहे जायँ </poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>गर्मी का चौमासा
लोग धरम जान कर
अहरी चलाते थे
जहाँ प्यास लगने पर
चौए चरवाहे पानी पिया करते थे
कभी कभी महावत भी आते थे
अपने हाथी ले कर
लेकिन अहरी वाला हाथी के लिए
हामी नहीं भरता था
क्योंकि हाथी पानी पी कर
अपने सूंड भर भर कर
जल क्रीडा करते थे
अहरी में इतना ही पानी भरा रहता था
जिस से गोरू मानुष जी भर पानी पी कर
अपने अपने ठीहे जायँ </poem>