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|संग्रह=शहर अब भी संभावना है / अशोक वाजपेयी
}}
{{KKCatKavita}}<poem>काँच के आसमानी टुकड़े <br>और उन पर बिछलती सूर्य की करुणा <br>तुम उन सबको सहेज लेती हो<br>क्योंकि तुम्हारी अपनी खिड़की के <br>आठों काँच सुरक्षित हैं<br>और सूर्य की करुणा<br>तुम्हारे मुँडेरों भी<br>
रोज़ बरस जाती है।
</poem>