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02:20, 9 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>खिल उठता है अशोक
प्रमदा के चरणों के
आघात से;
पर यहाँ,
प्रमदा कोई दिखी नहीं
फिर भी मित्र,
विकसित है वह अशोक,
देखो तो।
मित्र ने कहा,
तुम पुराने पचडे में पड़े हो
अब तो अशोक को कोई नहीं जानता
लहरीली पत्तियों वाले
देवदार को ही अब
सब अशोक मानते हैं।
प्रमदाओं की वह प्रथा
रही होगी युगों पूर्व
क्षमा करो
बेचारी आधुनिकाओं को।
31.10.2002</poem>