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फ़क़ीर बन कर तुम उनके दर पर हज़ार धुनि रमा के बैठो / इब्ने इंशा
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13:43, 9 नवम्बर 2009
जनाब-ए-इंशा ये आशिक़ी है जनाब-ए-इंशा ये ज़िंदगी है
जनाब-ए-इंशा जो है यही है न इससे दामन छुड़ा के बैठो </poem>
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