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कल रात / इला प्रसाद
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14:51, 9 नवम्बर 2009
नसीब में इतना अन्धेरा बदा था!
हवा
शेार
शोर
मचाती रही
पेड़ सिर धुनते रहे
धरती का दामन भीगता रहा
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