भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<poem>कानन दूसरो नाम सुनै नहीं, एक ही रंग रंग्यो यह डोरो।
धोखेहु दूसरो नाम कढ़ै, रसना मुख काहिलाहल काढ़ि हलाहल बोरो॥'ठाकुर ' चित्त की वृत्ति यही, हम कैसें कैसेहूँ टेक तजैं नहिं भोरो।बावरी वे अंखियां अँखियाँ जरि जांहिंजाहिं, जो सांवरो छवि निहारतिं साँवरो छाँड़ि निहारत गोरो॥
</Poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits