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16:23, 14 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
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हम तो मोल लिए या घर के।
दास-दास श्री वल्लभ-कुल के, चाकर राधा-बर के।
माता श्री राधिका पिता हरि बंधु दास गुन-कर के।
’हरीचंद’ तुम्हरे ही कहावत, नहिं बिधि के नहिं हर के॥
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