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मस्तक पर ठुकी कील / चंद्र रेखा ढडवाल
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02:10, 1 दिसम्बर 2009
बहुत कठिन है/तब और भी कठिन
जब फ़ाख़्ताओं को देखते/तुम्हें सोचना पड़े
कि तुम्हारे
पसंखों
पंखों
का विस्तार
उचित नहीं है
कि तुम्हारे पंखों पर के
द्विजेन्द्र द्विज
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