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}}
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अबके फिर गुलमोहर दहके
गाछों भर आग से लहके
किसी संझियाए पहर में
प्रतीक्षा-धुली दो आँखें
लाल-उजली मेघ पाखें
इस उन्मन दीखते शहर में
बनते ही बाहों के घेरे
सुरभि के संवाद से घनेरे
कजलायी आँख की लहर में
उतरेगा किसी हरी डार सा
दिन होगा पेड़ हरसिंगार का
सूर्य-बिम्ब पास की नहर में
(१६ मार्च, २००० को रचित)
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अबके फिर गुलमोहर दहके
गाछों भर आग से लहके
किसी संझियाए पहर में
प्रतीक्षा-धुली दो आँखें
लाल-उजली मेघ पाखें
इस उन्मन दीखते शहर में
बनते ही बाहों के घेरे
सुरभि के संवाद से घनेरे
कजलायी आँख की लहर में
उतरेगा किसी हरी डार सा
दिन होगा पेड़ हरसिंगार का
सूर्य-बिम्ब पास की नहर में
(१६ मार्च, २००० को रचित)