गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
धूम है अपनी पारसाई की / अल्ताफ़ हुसैन हाली
6 bytes added
,
14:59, 8 दिसम्बर 2009
{{KKCatGhazal}}
<poem>
धूम थी अपनी पारसाई की
की भी और किससे आश्नाई की
क्यों बढ़ाते हो इख़्तलात बहुत
हमको ताक़त नहीं जुदाई की
मुँह कहाँ तक छुपाओगे हमसे
साअत आ पहुँची उस जुदाई की
ज़िंदा
फरने
फिरने
की हवस है ‘हाली’
इन्तहा है ये बेहयाई की
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
Mover, Uploader
4,005
edits