गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
हो भले ही जाए सत्ता मांसाहारी / विनोद तिवारी
No change in size
,
02:13, 18 दिसम्बर 2009
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem
>
हो भले ही जाए सत्ता मांसाहारी
वंचितों का भाग्य फिर भी राग-दरबारी
नष्ट होते जा रहे संबंध मृदुता के
शर्करा भी अब तो होती जा रही खारी
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
Mover, Uploader
4,005
edits