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ऐसा कुछ भी नहीं जिंदगी में कि हर जानेवाली अर्थी पर रोया जाए |
 
काँटों बीच उगी डाली पर कल
जागी थी जो कोमल चिंगारी ,
ओ समाधि पर धूप-धुआँ सुलगाने वाले सुन !
ऐसा कुछ भी नहीं रूपश्री में कि सारा युग खंडहरों में खोया जाए |....
 
चाहे मन में हो या राहों में
हर अँधियारा भाई-भाई है ,
पर चन्दा को मन के दाग दिखाने वाले सुन !
ऐसा कुछ भी नहीं चाँदनी में कि जलता मस्तक शबनम से धोया जाये |
 
साँप नहीं मरता अपने विष से
फिर मन की पीड़ाओं का डर क्या ,
प्यार बिना दुनिया को नर्क बताने वाले सुन !
ऐसा कुछ भी नहीं बंधनों में कि सारी उम्र किसी का भी होया जाए |
 
सूरज की सोनिल शहतीरों ने
साथ दिया कब अन्धी आँखों का ,
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