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अपना यह 'दूसरापन' / कुंवर नारायण

72 bytes removed, 10:12, 26 दिसम्बर 2009
|रचनाकार=कुंवर नारायण
|संग्रह=वाजश्रवा के बहाने / कुंवर नारायण
}} {{KKCatKavita}}<poem>कल सुबह भी खिलेगा<br>इसी सूरजमुखी खिड़की पर<br>फूल-सा एक सूर्योदय<br><br>
फैलेगी घर में<br>सुगन्ध-सी धूप<br><br>
चिड़ियों की चहचहाटें<br>लाएंगी एक निमन्त्रण<br>कि अब उठो-आओ उड़ें<br>बस एक उड़ान भर ही दूर है<br>हमारे पंखों का आकाश।<br><br>
एक फड़फड़ाहट में<br>समा जाएगा<br>सारी उड़ानों का सारांश!<br><br>
और फिर भी<br>बचा रह जाएगा हर एक के लिए<br>नयी-नयी उड़ानों का<br>उतना ही बड़ा आकाश<br>जैसा मुझे मिला था!<br><br>
एक महावन हो जाएगा<br>मन<br>उसमें एक अन्य ही जीवन होगा<br>यह विस्थापन,<br>कोई दूसरा ही मैं होगा<br>अपना यह दूसरापन<br><br>
वन में भी जीवन है<br>जैसे जीवन में भी वन!<br><br>
यह पटाक्षेप नहीं है<br>
केवल दृश्य-परिवर्तन।
</poem>
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