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पावती / मोहन राणा

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|संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदी / मोहन राणा
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लौटती हुई रचनाएँ
 
किसे होता है खेद
 
संपादक को
 कवि को ? 
शहडोल के शर्मा जी को
 
परीक्षाओं के कुंजीकारों को
 
नई सड़क की भीड़ को
 
किसी अधूरे
 
बड़बड़ाए वाक्य को
 
किसे होता है खेद इस चुप्पी में
 
मुझे कोई खेद नहीं
 
उन्हें भी कोई खेद नहीं
 
फिर यह पावती किसके लिए
 
 
9.2.2006
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