भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पावस रितु बृन्दावनकी / बिहारी

25 bytes added, 05:51, 28 दिसम्बर 2009
|रचनाकार=बिहारी
|संग्रह=
}}{{KKCatKavita}}<poem>
पावस रितु बृन्दावनकी दुति दिन-दिन दूनी दरसै है।
छबि सरसै है लूमझूम यो सावन घन घन बरसै है॥१॥
(रसिक) बिहारीजी रो भीज्यो पीतांबर प्यारीजी री चूनर सारी है।
सुखकारी है, कुंजाँ झूल रह्या पिय प्यारी है॥४॥
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits