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|संग्रह= टूटती शृंखलाएँ / महेन्द्र भटनागर
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अपने पथ को बदलो,
बदलो !
चिर-प्राचीन विषम
रूढि-ग्रस्त,
बदलो
अपने पथ को बदलो !
अभ्यस्त चरण
नूतन-पथ का आज सुनो
नव आवाहन,
जीवन का स्वर !
उन्नति प्रगति निरन्तर,
निर्भय सुदृढ़ अथक
अपराजित !
बदलो
अपने पथ को बदलो !</poem>