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|संग्रह=मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर
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वांछित
अमरता नहीं;
चाहता हूँ
अजरता।
सकल स्वास्थ्य, आरोग्य
निरुद्विग्नता —
तन और मन की।
अभिप्रेत वरदान यह
कल्पित किसी ईश से —
नहीं।
स्व-साधित सतत साधना से —
आराधना से नहीं।
तन क्लेश-मुक्त
मन क्लेश-मुक्त
हाँ,
एक-सौ-और-पच्चीस वर्षों
जिएँ हम!
अपने लिए,
दूसरों के लिए।
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