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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह=आहत युग / महेन्द्र भटनागर
}}{{KKCatKavita}}<poem>देश की नव देह पर <br> चिपकी हुई <br> जो अनगिनत जोंके-जलौकें, <br> रक्त-लोलुप <br> लोभ-मोहित <br> बुभुक्षित <br> जोंके-जलौकें —<br>आओ <br> उन्हें नोचें-उखाड़ें, <br> धधकती आग में झोंकें ! <br> उनकी <br> आतुर उफ़नती वासना को <br> फैलने से <br> सब-कुछ लील लेने से <br> अविलम्ब रोकें ! <br> देश की नव देह <br> यों टूटे नहीं, <br> ख़ुदगरज़ कुछ लोग <br> विकसित देश की सम्पन्नता <br> लूटे नहीं ! <br/poem>
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