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कांक्रीट / नरेश सक्सेना

No change in size, 04:41, 5 जनवरी 2010
|रचनाकार=नरेश सक्सेना
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आपस में सट कर फूटी किलयां कलियाँ
एक दूसरे के खिलने के लिये जगह छोड़ देती हैं
जगह छोड़ देती हैं गिट्टियां
आपस में चाहें चाहे जितना सटें
अपने बीच अपने बराबर जगह
ख़ाली छोड़ देती हैं
जिसमें भरी जाती है रेत
आैर और रेत के कण भीएक दूसरे को चाहें चाहे जितना भींचें
जितनी जगह खुद घेरते हैं
उतनी जगह अपने बीच ख़ाली छोड़ देते हैं।
सीमेंट
कितनी महीन
आैर और आपस में सटी हुई
लेकिन उसमें भी होती हैं ख़ाली जगहें
जिसमें समाता है पानी
आैर और पानी में, खैर छोडि़ये
इस तरह कथा कंक्रीट की बताती है
रिश्तों की ताकत अपने बीच
ख़ाली जगह छोड़ने की अहिमयत के बारे में।
</poem>
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