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खड़ा हो कि फिर फूँक विष की लगा
::धुजटी ने बजाया विषान,
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
::ओ मेरे देश के नौजवान!
गरज कर बता सबको, मारे किसीके
::मरेगा नहीं हिन्द-देश,
लहू की नदी तैर कर आ गया है,
::कहीं से कहीं हिन्द-देश!
लड़ाई के मैदान में चल रहे लेके
::हम उसका उड़ता निशान,
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
::ओ मेरे देश के नौजवान!
 
अहा! जगमगाने लगी रात की
::माँग में रौशनी की लकीर,
अहा! फूल हँसने लगे, सामने देख,
::उड़ने लगा वह अबीर
अहा! यह उषा होके उड़ता चला
::आ रहा देवता का विमान,
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
::ओ मेरे देश के नौजवान!
'''रचनाकाल: १९४४'''
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यूनान के युद्धोत्तर विद्रोह के समय रचित
'''रचनाकाल: १९४५'''
</poem>
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