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जय विधायिके अमर क्रान्ति की! अरुण देश की रानी!
रक्त-कुसुम-धारिणि! जगतारिणि! जय नव शिवे! भवानी!
 
:अरुण विश्व की काली, जय हो,
:लाल सितारोंवाली, जय हो,
भरे प्राण में आग, भयानक विप्लव का मद ढाले,
देश-देश में घूम रहे तेरे सैनिक मतवाले।
 
:नगर-नगर जल रहीं भट्ठियाँ,
:घर-घर सुलग रही चिनगारी;
:यह आयोजन जगद्दहन का,
:यह जल उठने की तैयारी;
 
:देश देश में शिखा क्षोभ की
:उमड़-घुमड़ कर बोल रही है;
:लरज रहीं चोटियाँ शैल की,
:धरती क्षण-क्षण डोल रही है।
 
ये फूटे अंगार, कढ़े अंबर में लाल सितारे,
फटी भूमि, वे बढ़े ज्योति के लाल-लाल फव्वारे।
:जहाँ मनुज पहले स्वतंत्रता
:से हो रहा साम्य का कामी।
 
:भ्रमित ज्ञान से जहाँ जाँच हो
:रही दीप्त स्वातंत्र्य-समर की,
:जहाँ मनुज है पूज रहा जग को,
:बिसार सुधि अपने घर की।
 
:जहाँ मृषा संबंध विश्व-मानवता
:से नर जोड़ रहा है,
:जन्मभूमि का भाग्य जगत की
:नीति-शिला पर फोड़ रहा है।
चिल्लाते हैं "विश्व, विश्व" कह जहाँ चतुर नर ज्ञानी,
बुद्धि-भीरु सकते न डाल जलते स्वदेश पर पानी।
जहाँ मासको के रणधीरों के गुण गाये जाते,
दिल्ली के रुधिराक्त वीर को देख लोग सकुचाते।
 
:दिल्ली, आह, कलंक देश की,
:दिल्ली, आह, ग्लानि की भाषा,
:दिल्ली, आह, मरण पौरुष का,
:दिल्ली, छिन्न-भिन्न अभिलाषा।
विवश देश की छाती पर ठोकर की एक निशानी,
दिल्ली, पराधीन भारत की जलती हुई कहानी।
मरे हुओं की ग्लानि, जीवितों को रण की ललकार,
दिल्ली, वीरविहीन देश की गिरी हुई तलवार।
 
:बरबस लगी देश के होठों
:से यह भरी जहर की प्याली,
:यह नागिनी स्वदेश-हृदय पर
:गरल उँड़ेल लोटनेवाली।
प्रश्नचिह्न भारत का, भारत के बल की पहचान,
दिल्ली राजपुरी भारत की, भारत का अपमान।
 
 
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