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यह जो छिपे सूर्य-शशि, यह जो हिलने लगे पहाड़।
:सो क्या था विस्फोट अनर्गल?
:बाल-कूतुहल? नर-प्रमाद था?
:निष्पेषित मानवता का यह
:क्या न भयंकर तूर्य-नाद था?
:इस उद्वेलन--बीच प्रलय का
:था पूरित उल्लास नहीं क्या?
:लाल भवानी पहुँच गई है
:भरत-भूमि के पास नहीं क्या?
फूट पड़ी है क्या न प्राण में नये तेज की धारा?
गिरने को हो रही छोड़कर नींव नहीं क्या कारा?
ननपति के पद में जबतक है बँधी हुई जंजीर,
तोड़ सकेगा कौन विषमता का प्रस्तर-प्राचीर?
:दहक रही मिट्टी स्वदेश की,
:खौल रहा गंगा का पानी;
:प्राचीरों में गरज रही है
:जंजीरों से कसी जवानी।
:यह प्रवाह निर्भीक तेज का,
:यह अजस्र यौवन की धारा,
:अनवरुद्ध यह शिखा यज्ञ की,
:यह दुर्जय अभियान हमारा।
</poem>
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