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:अनवरुद्ध यह शिखा यज्ञ की,
:यह दुर्जय अभियान हमारा।
यह सिद्धाग्नि प्रबुद्ध देश की जड़ता हरनेवाली,
जन-जन के मन में बन पौरुष-शिखा बिहरनेवाली।
अर्पित करो समिध, आओ, हे समता के अभियानी!
इसी कुंड से निकलेगी भारत की लाल भवानी।
 
:हाँ, भारत की लाल भवानी,
:जवा-कुसुम के हारोंवाली,
:शिवा, रक्त-रोहित-वसना,
:कबरी में लाल सितारोंवाली।
:कर में लिए त्रिशूल, कमंडल,
:दिव्य शोभिनी, सुरसरि-स्नाता,
:राजनीति की अचल स्वामिनी,
:साम्य-धर्म-ध्वज-धर की माता।
भरत-भूमि की मिट्टी से श्रृंगार सजानेवाली,
चढ़ हिमाद्रिपर विश्व-शांति का शंख बजानेवाली।
 
:दिल्ली का नभ दहक उठा, यह--
:श्वास उसी कल्याणी का है।
:चमक रही जो लपट चतुर्दिक,
:अंचल लाल भवानी का है।
 
</poem>
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