Changes

{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनीषा पांडेय|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
प्‍यार में डूबी हुई लड़कियों से
 
सब डरते हैं
डरता है समाज
 
माँ डरती है,
 
पिता को नींद नहीं आती रात-भर,
 
भाई क्रोध से फुँफकारते हैं,
 पड़ोसी दांतों दाँतों तले उंगली उँगली दबाते 
रहस्‍य से पर्दा उठाते हैं...
लड़की जो तालाब थी अब तक
 
ठहरी हुई झील
 
कैसे हो गई नदी
और उससे भी बढ़कर आबशार
 बांधे बाँधे नहीं बंधतीबँधती
बहती ही जाती है
 
झर-झर-झर-झर।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,118
edits