:तो ये रत्नाभरण वार दूँ, तुम पर मैं हे बड़भागी!
धारण करूँ योग तुम-सा ही, भोग-लालसा के कारण,
:पर कर सकती हूँ मैं यों ही, विपुल-विघ्न-बाधा वारण॥
इस व्रत में किस इच्छा से तुम, व्रती हुए हो, बतलाओ?
:मुझमें वह सामर्थ्य है कि तुम, जो चाहो सो सब पाओ।
धन की इच्छा हो तुमको तो, सोने का मेरा भू-भाग,
:शासक, भूप बनो तुम उसके, त्यागो यह अति विषम विराग॥
और किसी दुर्जय वैरी से, लेना है तुमको प्रतिशोध,