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पक्षपातमय सानुरोध है, जितना अटल प्रेम का बोध,
:उतना ही बलवत्तर समझो, कामिनियों का वैर-विरोध।
होता है विरोध से भी कुछ, अधिक कराल हमारा क्रोध,
:और, क्रोध से भी विशेष है, द्वेष-पूर्ण अपना प्रतिशोध॥
 
देख क्यों न लो तुम, मैं जितनी सुन्दर हूँ उतनी ही घोर,
:दीख रही हूँ जितनी कोमल, हूँ उतनी ही कठिन-कठोर!"
सचमुच विस्मयपूर्वक सबने, देखा निज समक्ष तत्काल-
:वह अति रम्य रूप पल भर में, सहसा बना विकट-कराल!
 
सबने मृदु मारुत का दारुण, झंझा नर्तन देखा था,
:सन्ध्या के उपरान्त तमी का, विकृतावर्तन देखा था!
काल-कीट-कृत वयस-कुसुम-का,
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