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08:01, 29 दिसम्बर 2006 लेखक: [[कुँअर बेचैन]]
[[Category:कविताएँ]]
[[Category: कुँअर बेचैन]]
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है समय प्रतिकूल माना<br>
पर समय अनुकूल भी है। <br>
शाख पर इक फूल भी है॥ <br><br>
घन तिमिर में इक दिये की <br>
टिमटिमाहट भी बहुत है <br>
एक सूने द्वार पर <br>
बेजान आहट भी बहुत है <br><br>
लाख भंवरें हों नदी में <br>
पर कहीं पर कूल भी है। <br>
शाख पर इक फूल भी है॥ <br><br>
विरह-पल है पर इसी में <br>
एक मीठा गान भी है <br>
मरुस्थलों में रेत भी है <br>
और नखलिस्तान भी है <br><br>
साथ में ठंडी हवा के <br>
मानता हूं धूल भी है। <br>
शाख पर इक फूल भी है॥ <br><br>
है परम सौभाग्य अपना <br>
अधर पर यह प्यास तो है <br>
है मिलन माना अनिश्चित <br>
पर मिलन की आस तो है <br><br>
प्यार इक वरदान भी है <br>
प्यार माना भूल भी है। <br>
शाख पर इक फूल भी है॥ <br><br>