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17:13, 21 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
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|वर्ग=अन्य गीत
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|रचनाकार=??
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<poem>
पढ़-लिख के बड़ा हो के तू इक किताब लिखना
अपने सवालों का तू ख़ुद ही जवाब लिखना
हाथों से जिनका दामन इक दिन है छूट जाना
तारों के डूबते ही जिनको है टूट जाना
ये आँखें देखती हैं क्यूँ ऐसे ख़ाब लिखना
अपने सवालों का तू ख़ुद ही जवाब लिखना
मैंने तो प्यार को ही मज़हब बना लिया है
इस दिल को दिल की दुनिया का रब बना लिया है
ईमान हो गया क्या मेरा ख़राब लिखना
अपने सवालों का तू ख़ुद ही जवाब लिखना
कहते हैं लोग उनकी रसमों को मैंने तोड़ा
ये फ़ैसला भी मैने तेरी समझ पे छोड़ा
मेरी ख़ताओं का तू पूरा हिसाब लिखना
</poem>