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|संग्रह=चैती / त्रिलोचन
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बिछे हुए मार्ग यहाँ अनेक हैं;
यहाँ, वहाँ, दृष्टि जहाँ घुमाइए,
उठे पदों की गति की कहानियाँ
अजस्रता में अपनी सजीव हैं.।
चली नदी सी पद की परंपरा
रुकी नहीं वेग कभी चुका नहीं
नए नए पैर अनेक भाव से
बढ़े. । इसी से पदवी बनी रही.।
कभी अहेरी मृग खोजने गए
जलाशयों के तट, तो प्रयाण को
बता दिया मार्ग बिना अहेर के
सुमार्गता एक नवीन तथ्य है.।
कई गए, और गए, और चला किए,
रुके नहीं तो नव मार्ग हो गया
चला किया तो बहुधा प्रसिद्धि भी
मिली, दिखा लक्षण लक्ष्य एक ही.।
अनेक भावाश्रय मार्ग हो गया,
प्रवाह जैसे सरि के स्वरूप में
अनेक जीवाश्रय हो गया, यहाँ
अनेकता ही नव आत्मबोध है .।</poem>