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10:00, 27 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
}}
[[Category:पद]]
<poem>
थोरी-थोरी बैस की अहीरन की छोरी संग,
भोरी-भोरी बातन उचारत गुमान की ।
कहै रतनाकर बजावत मृदंग-चंग,
अंगन उमंग भरी जोबन उठान की ॥
घाघरे की घूमनि समेटि कै कछोटी किऐं,
कटि-तट फेंटि कोछी कलित विधान की ।
झोरी भरैं रोरी, घोरि केसर कमोरी भरैं,
होरी चली खेलन किसोरी वृषभान की ॥
</poem>