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{{KKRachna
|रचनाकार=बुल्ले शाह
}}
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पहले खुद को यार बनाते हो
फिर शरत-ऐ-नमाज़ लगाते हो
जब जौक-ऐ-नमूद सताता है
फिर लैला बन बन आते हो
किस से पर्दा रखते हो
क्यों ओट में बेठ के तकते हो
शाह-शमस की खाल खिंचवाई
मंसूर को सूली गढ़वाई
ज़करीया सिर आरी भी चलवाई
अब क्या रह गया लेखा बाकी
किस से पर्दा रखते हो
क्यों ओट में बेठ के तकते हो
अपनी सिमत जो तुम हो आये
छुप कर भी नहीं अब छुप सकते
नाम भी को रखवाया बुल्ला
और खाकी चोला भी पहना
किस से पर्दा रखते हो
क्यों ओट में बेठ के तकते हो
</poem>
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|रचनाकार=बुल्ले शाह
}}
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<poem>
पहले खुद को यार बनाते हो
फिर शरत-ऐ-नमाज़ लगाते हो
जब जौक-ऐ-नमूद सताता है
फिर लैला बन बन आते हो
किस से पर्दा रखते हो
क्यों ओट में बेठ के तकते हो
शाह-शमस की खाल खिंचवाई
मंसूर को सूली गढ़वाई
ज़करीया सिर आरी भी चलवाई
अब क्या रह गया लेखा बाकी
किस से पर्दा रखते हो
क्यों ओट में बेठ के तकते हो
अपनी सिमत जो तुम हो आये
छुप कर भी नहीं अब छुप सकते
नाम भी को रखवाया बुल्ला
और खाकी चोला भी पहना
किस से पर्दा रखते हो
क्यों ओट में बेठ के तकते हो
</poem>