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|रचनाकार= ग़ालिब
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
लाग़र<ref>दुर्बल</ref> इतना हूं कि, गर तू बज़्म<ref>महफिल</ref> में जा दे मुझे
मेरा ज़िम्मा, देख कर गर कोई बतला दे मुझे

क्या तअ़ज्जुब है कि उस को, देख कर आ जाए रहम
वां तलक कोई किसी हीले से पहुंचा दे मुझे

मुंह न दिखलावे न दिखला, पर ब अंदाज़-ए`इताब<ref>गुस्से के ढंग से</ref>
खोल कर परदा ज़रा, आँखें ही दिखला दे मुझे

यां तलक मेरी गिरफ़्तारी से वह ख़ुश है, कि मैं
ज़ुल्फ़ गर बन जाऊं, तो शाने<ref>कंघी</ref> में उलझा दे मुझे
</poem>
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