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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
ऊधौ जम-जातना की बात न चलाबौ नैकु,
::अब दुख -सुख कौ बिबेक करिबौ कहा ।
प्रेम-रतनाकर-गम्भीर परे मीननि कौं,
:: इहिं बह्व-गोपद की भीति भरिबौ कहा ॥
एकै बार लैहैं मरि मीच की कृपा सौं हम,
::रोकि-रोकि सांस बिनु मीच मरिबौ कहा ॥
छिन जिन झेली कान्ह-बिरह-बलाय तिन्हैं,
::नरक-निकाय की धरक धरिबौं कहा ॥53॥
</poem>
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