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भटक रही है आग भयानक / ओसिप मंदेलश्ताम
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15:20, 14 मार्च 2010
देख, वहाँ तेरा भाई बेचारा, पित्रोपोल मर रहा है
काला
काली
निवा नदी पर छाया वसन्त पारदर्शी
अमर बना देगा तुझे वह, अमृत-सा बह रहा है
तू सितारा है यदि तो पित्रोपोल नगर है तेरा
अनिल जनविजय
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