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{{KKRachna
|रचनाकार=राहत इन्दौरी
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>सारी बस्ती कदमों में है, ये भी इक फ़नकारी है
वरना बदन को छोड़ के अपना जो कुछ है सरकारी है
कालेज के सब लड़के चुप हैं कागज की इक नाव लिये
चारों तरफ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
फूलों की खुश्बू लूटी है, तितली के पर नोचे हैं
ये रहजन का काम नहीं है, रहबर की मक्कारी है
हमने दो सौ साल से घर में तोते पाल के रखे हैं
मीर तक़ी के शेर सुनाना कौन बड़ी फ़नकारी है
अब फिरते हैं हम रिश्तों के रंग-बिरंगे ज़ख्म लिये
सबसे हँस कर मिलना-जुलना बहुत बड़ी बीमारी है
दौलत बाज़ू हिकमत गेसू शोहरत माथा गीबत होंठ
इस औरत से बच कर रहना, ये औरत बाज़ारी है
कश्ती पर आँच आ जाये तो हाथ कलम करवा देना
लाओ मुझे पतवारें दे दो, मेरी जिम्मेदारी है
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|रचनाकार=राहत इन्दौरी
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>सारी बस्ती कदमों में है, ये भी इक फ़नकारी है
वरना बदन को छोड़ के अपना जो कुछ है सरकारी है
कालेज के सब लड़के चुप हैं कागज की इक नाव लिये
चारों तरफ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
फूलों की खुश्बू लूटी है, तितली के पर नोचे हैं
ये रहजन का काम नहीं है, रहबर की मक्कारी है
हमने दो सौ साल से घर में तोते पाल के रखे हैं
मीर तक़ी के शेर सुनाना कौन बड़ी फ़नकारी है
अब फिरते हैं हम रिश्तों के रंग-बिरंगे ज़ख्म लिये
सबसे हँस कर मिलना-जुलना बहुत बड़ी बीमारी है
दौलत बाज़ू हिकमत गेसू शोहरत माथा गीबत होंठ
इस औरत से बच कर रहना, ये औरत बाज़ारी है
कश्ती पर आँच आ जाये तो हाथ कलम करवा देना
लाओ मुझे पतवारें दे दो, मेरी जिम्मेदारी है