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|रचनाकार= हरभजन सिंह
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<poem>
आखिरी ख्वाहिश ख्वाहिश बस इतनी है
मेरे मरने की खबर
तुम खुद उस दोस्त दोस्त तक पहुंचाना
जिससे तुम बरसों से रूठे हुए हो।
फटाक से न खुले
तो वापस न चले आना,
दरवाजा खुलने का इंतजार करना।
वह यदि तुम्हें तुम्हें देखकर
दरवाजे पर खड़ा हो जाए
बुत की तरह
तो भी वापस न आना,
बोलने की कोशिश करना।
अगर मेरी बात न कही जा सके तुमसे
तो सिर्फ मेरा नाम लेकर
आंसू बह जाएं तो बहने देना,
बाकी वह खुद समझ जाएगा।
उसको मालूम है,
इस तरह की ख्वाहिश ख्वाहिश
केवल मैं ही कर सकता हूं।
</poem>