1,008 bytes added,
05:09, 3 अप्रैल 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
}}
{{KKCatKavitt}}
<poem>
कंस के कहे सौं जदुबंस कौ बताइ उन्हैं
::तैसैं ही प्रसंसि कुब्जा पै ललचायौ जौ ।
कहै रतनाकर न मुष्टिक चनूर आदि
::मल्लनि कौ ध्यान आनि हिय कसकायौ जौ ॥
नन्द जसुदा की सुखमूरि करि धूरि सबै
::गोपी ग्वाल गैयनि पै गाज लै गिरायौ जौ ।
होते कहूँ क्रूर तौ न जानैं करते धौं कहा
::एतो क्रूर करम अक्रूर ह्वै कमायौ जौ ॥79॥
</poem>