भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सिन्दबाद :चार / अवतार एनगिल

12 bytes removed, 05:20, 27 अप्रैल 2010
{{KKCatKavita}}
<poem>
रचजब जब उन गलीज़ बौनों ने
अनेक कद्दावर यात्रियों की हत्या कर दी
तब सिन्दबाद को अहसास हुआ
धधकती आँख वाले
भूख के उस विराट राक्षस को
जिसके आबनूस की जादुई लकड़ी से बने द्वारा द्वार वाले
महल के आंगन में
हर रोज़ जलता है---एक अलाव
और अलाव के पास रखी हैं
आदमी के दुःखों की सी छड़ें अनेकजिनपर पिरोकर वह हर रोज़
आदमजात को भूनता है
और भूनकर खा जाता है