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हम बचेंगे अगर / नवीन सागर
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15:13, 2 मई 2010
देखती है
और धरती पर मारती है
लार और
हॅंसी
हँसी
से सना
उसका चेहरा
अभी इतना मुलायम है
अभी सारे मकान
कागज
काग़ज़
की तरह हल्के
हवा में हिलते हैं।
आकाश अभी विरल है दूर
धीरे-धीरे हिलाती हवा
फूलों का तमाशा है
वे
हॅंसते
हँसते
हुए
इशारे करते हैं:
दूर-दूरान्तरों से
उत्सुक
काफिले
काफ़िले
धूप में चमकते हुए आएँगे।
जन्म चाहिए
हर
चीज
चीज़
को एक और
जन्म चाहिए।
</poem>
अनिल जनविजय
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