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<Poem>
मरने से डरता हूं हूँ एक दिन
तो बड़ी हिंसा हो जाती है दूर-दूर
पर मैं तो नागरिक
नींद के पाताल में चलता
बच-बच के घर की तरफतरफ़गुण्डों को नमस्कार करता.करता।
आता है वह अक्सर कहने को
मरने से डरता हूं हूँ एक दिनतो बड़ी हिंसा हो जाती है दूर-दूर.दूर।
वह दोस्त मेरा
सब कुछ हो जाएगा
आने को हैं अपने बच्चे इस दुनिया में
समतल मैदान करो खेलेंगे.खेलेंगे।
पर मैं तो नागरिक
दोस्त को नुक्कड़ तक छोड़ता
लौटता
गुण्डों को नमस्कार करता.करता।</poem>