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{{KKAnooditRachna
|रचनाकार=आन्ना अख़्मातवा निज़ार क़ब्बानी
|संग्रह=
}}
जैसे कि इस क्षण मैं
कर रहा हूँ कविता के जल से तुम्हें स्नात
और कविता के आभूषणों से ही से कर रहा हूँ तुम्हारा शृंगार।श्रृंगार।
अगर ऐसा हो कभी
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